केन्स का तरलता पसंदगी सिद्धांत और तरलता जाल (Liquidity Trap)(TGT Economics 2018 आधारित विस्तृत जानकारी और जरूरी सवाल जवाब भी देखे

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केन्स का तरलता पसंदगी सिद्धांत और तरलता जाल (Liquidity Trap)
(TGT Economics 2018 आधारित विस्तृत जानकारी और जरूरी सवाल जवाब भी देखे

परिचय:

अर्थशास्त्र में जब बात पूंजी, निवेश और ब्याज दरों की होती है, तब जॉन मेनार्ड केन्स (John Maynard Keynes) का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। उन्होंने 1936 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “The General Theory of Employment, Interest and Money” में तरलता पसंदगी सिद्धांत (Liquidity Preference Theory) प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत यह बताता है कि लोग अपनी धनराशि (money) को नकद (liquidity) के रूप में क्यों रखना चाहते हैं।

तरलता पसंदगी का अर्थ:

तरलता पसंदगी का मतलब है कि लोग अपने पैसे को नकदी के रूप में क्यों और कितनी मात्रा में रखना चाहते हैं, न कि उसे निवेश में लगाना चाहते हैं।

तरलता = नकद या तुरंत प्रयोग में आने वाली राशि
पसंदगी = झुकाव या प्राथमिकता

यानी, केन्स का यह सिद्धांत यह बताता है कि ब्याज दरें किस कारण बदलती हैं और लोग किस स्थिति में नकद रखना ज्यादा पसंद करते हैं।

तरलता पसंदगी सिद्धांत के मुख्य उद्देश्य:

  1. यह समझाना कि लोग किस कारण नकद रखना चाहते हैं।
  2. यह बताना कि ब्याज दरों का निर्धारण किस आधार पर होता है।
  3. यह दिखाना कि मुद्रा आपूर्ति (Money Supply) और मुद्रा की मांग (Money Demand) में संबंध कैसे होता है।

केन्स के अनुसार धन रखने के तीन उद्देश्य:

  1. लेन-देन का उद्देश्य (Transaction Motive):
    दैनिक आवश्यकताओं और खर्चों को पूरा करने के लिए लोग नकद राशि अपने पास रखते हैं।
  2. सावधानी का उद्देश्य (Precautionary Motive):
    भविष्य में किसी अनपेक्षित घटना या आपात स्थिति के लिए लोग कुछ नकद सुरक्षित रखते हैं।
  3. सट्टा उद्देश्य (Speculative Motive):
    लोग यह सोचकर नकद रखते हैं कि भविष्य में ब्याज दरों में बदलाव होगा, जिससे उन्हें निवेश पर लाभ हो सकता है।

ब्याज दर और तरलता पसंदगी का संबंध:

केन्स का मानना था कि लोग ब्याज दर के अनुसार नकद रखने या निवेश करने का निर्णय लेते हैं।

  • जब ब्याज दरें अधिक होती हैं, तो लोग अपने पैसे को निवेश करना पसंद करते हैं ताकि ज्यादा रिटर्न मिले।
  • जब ब्याज दरें बहुत कम होती हैं, तो लोग पैसा निवेश करने के बजाय नकद रखना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि भविष्य में ब्याज दरें बढ़ेंगी और निवेश का मूल्य घट जाएगा।

तरलता जाल (Liquidity Trap) क्या है?

तरलता जाल का मतलब है:
जब ब्याज दरें इतनी कम हो जाती हैं कि चाहे सरकार कितना भी पैसा बाजार में डाले, लोग उसे खर्च करने या निवेश करने की बजाय अपने पास नकद रूप में रखने लगते हैं। इस स्थिति में मौद्रिक नीति (Monetary Policy) का प्रभाव नहीं होता।

उदाहरण:

यदि सरकार सोचती है कि ब्याज दर को और घटाकर निवेश बढ़ाया जा सकता है, लेकिन ब्याज दर पहले से ही बहुत कम है, तो लोगों का यह विश्वास बन जाता है कि अब यह दर बढ़ेगी, इसलिए वे निवेश करने की बजाय नकद रखेंगे। इससे अर्थव्यवस्था में मांग नहीं बढ़ती।

तरलता जाल के लक्षण:

  1. ब्याज दरें बहुत कम होती हैं (लगभग 0%)
  2. मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाने पर भी निवेश नहीं बढ़ता
  3. लोग नकद रखना ज्यादा सुरक्षित मानते हैं
  4. मौद्रिक नीति प्रभावहीन हो जाती है
  5. अर्थव्यवस्था मंदी (recession) में जा सकती है

केन्स और क्लासिकल अर्थशास्त्रियों में अंतर:

विषयक्लासिकल विचारकेन्स का विचार
ब्याज दरबचत और निवेश से तय होती हैतरलता पसंदगी से तय होती है
मुद्रा की भूमिकासिर्फ लेन-देन के लिएसट्टा उद्देश्य से भी
सरकार की भूमिकासीमितसक्रिय

तरलता पसंदगी और मौद्रिक नीति:

यदि तरलता जाल की स्थिति होती है, तो सरकार द्वारा ब्याज दर को कम करना या मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाना बेअसर हो जाता है। इस समय केवल राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) जैसे कि सरकारी खर्च बढ़ाना, टैक्स कम करना आदि ही कारगर होते हैं।

तरलता जाल के प्रभाव:

  1. आर्थिक विकास में बाधा
  2. बेरोजगारी में वृद्धि
  3. मांग में कमी
  4. निवेश में गिरावट
  5. बचत की प्रवृत्ति में वृद्धि

वर्तमान संदर्भ में तरलता जाल:

2008 की वैश्विक मंदी और COVID-19 के बाद की अर्थव्यवस्था में कई विकसित देश (जैसे जापान, अमेरिका) तरलता जाल की स्थिति से गुजरे, जहाँ ब्याज दरें लगभग 0% थीं और फिर भी लोग नकद जमा करने को प्राथमिकता दे रहे थे

निष्कर्ष:

केन्स का तरलता पसंदगी सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि ब्याज दरें सिर्फ बचत और निवेश से नहीं बल्कि लोगों की नकद रखने की प्रवृत्ति से भी तय होती हैं। जब लोग अत्यधिक नकद जमा करना शुरू कर देते हैं, तो वह तरलता जाल की स्थिति बन जाती है जहाँ मौद्रिक नीति निष्क्रिय हो जाती है। ऐसे समय में सरकार को वित्तीय नीति से काम लेना पड़ता है।

तरलता पसंदगी और तरलता जाल से जुड़े 20 सवाल और उनके उत्तर:

4. ब्याज दर का तरलता पसंदगी से क्या संबंध है?

5. तरलता जाल किसे कहते हैं?

6. तरलता जाल की स्थिति में मौद्रिक नीति क्यों निष्क्रिय हो जाती है?

7. सट्टा उद्देश्य का क्या अर्थ है?

8. तरलता जाल के क्या प्रभाव होते हैं?

9. तरलता जाल की स्थिति में कौन सी नीति प्रभावशाली होती है?

10. तरलता जाल के लक्षण क्या हैं?

11. तरलता पसंदगी सिद्धांत के अनुसार ब्याज दर कैसे तय होती है?

12. तरलता पसंदगी सिद्धांत किसने दिया?

13. क्लासिकल और केन्सियन सिद्धांत में क्या अंतर है ?

14. लेन-देन उद्देश्य में नकद रखने का क्या कारण होता है?

15. 2008 की मंदी में कौन सा देश तरलता जाल की स्थिति में था?

16. तरलता पसंदगी और मुद्रा की मांग में क्या संबंध है?

17. तरलता जाल से निपटने के उपाय क्या हैं ?

18. केन्स ने अपनी पुस्तक “The General Theory…” कब लिखी?

19. ब्याज दर बहुत कम होने पर लोग क्या व्यवहार करते हैं?

20. तरलता पसंदगी सिद्धांत का मुख्य निष्कर्ष क्या है?

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मुद्रा के परिमाण सिद्धांत और फिशर का समीकरण – सरल भाषा में विस्तृत व्याख्या 2018 TGT सवाल ?

मुद्रा के परिमाण सिद्धांत और फिशर का समीकरण – सरल भाषा में विस्तृत व्याख्या

मुद्रा के परिमाण सिद्धांत और फिशर का समीकरण – सरल भाषा में विस्तृत व्याख्या 2018 TGT सवाल ?

1. प्रस्तावना

हम जिस अर्थव्यवस्था में रहते हैं, उसमें मुद्रा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हम बाजार से वस्तुएँ और सेवाएँ मुद्रा देकर खरीदते हैं। लेकिन यदि मुद्रा की मात्रा अचानक बहुत बढ़ा दी जाए, तो क्या होगा? क्या सब चीजों के दाम (कीमतें) बढ़ जाएँगे? यही समझने के लिए अर्थशास्त्र में “मुद्रा के परिमाण सिद्धांत” की अवधारणा दी गई है।

इस सिद्धांत को सबसे पहले इरविंग फिशर (Irving Fisher) ने प्रस्तुत किया। इसका मूल विचार यह है कि यदि मुद्रा की मात्रा (Money Supply) में परिवर्तन किया जाए तो उसका सीधा प्रभाव कीमतों पर (Price Level) पड़ता है।

2. फिशर का मुद्रा विनिमय समीकरण (Fisher’s Equation of Exchange)

फिशर ने निम्नलिखित समीकरण दिया: MV=PTMV = PTMV=PT

जहाँ:

  • M = मुद्रा की मात्रा (Money Supply)
  • V = मुद्रा की गति (Velocity of Money) — अर्थात् एक वर्ष में मुद्रा कितनी बार वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री में प्रयोग होती है।
  • P = मूल्य स्तर (Price Level)
  • T = लेन-देन की कुल मात्रा या वस्तुओं और सेवाओं की कुल मात्रा (Total Transactions or Output)

3. इस समीकरण का अर्थ

इस समीकरण के अनुसार, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा की आपूर्ति (M) और उसकी गति (V) को गुणा करने से जितना कुल खर्च (Total Expenditure) होता है, वही वस्तुओं और सेवाओं की कुल कीमत (P × T) के बराबर होता है।

दूसरे शब्दों में,

अर्थव्यवस्था में जितनी वस्तुएँ और सेवाएँ बेची जाती हैं (T), और उनकी औसत कीमतें (P) जो होती हैं, वह मिलकर उतनी ही राशि बनती है जितनी मुद्रा (M) और उसकी गति (V) से होती है।

4. मान्यताएँ (Assumptions) – फिशर के सिद्धांत की

इस सिद्धांत की कुछ महत्वपूर्ण मान्यताएँ हैं:

  1. V (Velocity) स्थिर मानी जाती है।
  2. T (Output) भी स्थिर या दीर्घकाल में पूर्ण उपयोग पर आधारित होता है।
  3. मुद्रा का उपयोग केवल लेन-देन के लिए होता है।
  4. यह एक दीर्घकालिक (Long Term) सिद्धांत है।

इन मान्यताओं के आधार पर यदि M यानी मुद्रा की मात्रा में कोई परिवर्तन होता है, तो उसका प्रभाव सीधे P यानी कीमत स्तर पर पड़ता है।

5. उदाहरण द्वारा समझें

अब मान लीजिए:

  • प्रारंभिक स्थिति:
    M = 100, V = 5, T = 100
    तो P = ?

MV=PT⇒100×5=P×100⇒500=100P⇒P=5MV = PT \Rightarrow 100 × 5 = P × 100 \Rightarrow 500 = 100P \Rightarrow P = 5MV=PT⇒100×5=P×100⇒500=100P⇒P=5

अब यदि मुद्रा की मात्रा को 2 गुना कर दिया जाए यानी M = 200 कर दिया जाए: MV=PT⇒200×5=P×100⇒1000=100P⇒P=10MV = PT \Rightarrow 200 × 5 = P × 100 \Rightarrow 1000 = 100P \Rightarrow P = 10MV=PT⇒200×5=P×100⇒1000=100P⇒P=10

इसका अर्थ है:

👉 कीमत स्तर भी 2 गुना हो गया
(पहले P = 5 था, अब P = 10 हो गया)

6. निष्कर्ष क्या निकलता है?

जब हम फिशर के समीकरण को मानते हैं और उसकी सभी शर्तें पूरी होती हैं, तो:

  • यदि मुद्रा की मात्रा (M) को 2 गुना किया जाए और बाकी सभी चीजें जैसे कि V और T स्थिर रहें,
  • तो P यानी कीमत स्तर भी 2 गुना हो जाता है।

यही फिशर के परिमाण सिद्धांत का मूल निष्कर्ष है।

7. वास्तविक जीवन में इसका प्रभाव

यह बात केवल एक सैद्धांतिक सिद्धांत नहीं है, बल्कि इतिहास में कई बार देखा गया है कि जब किसी देश ने अत्यधिक मुद्रा छाप दी (जैसे जर्मनी 1920s में, या जिम्बाब्वे 2008 में), तो वहाँ कीमतें बहुत तेजी से बढ़ीं — जिसे हम मुद्रास्फीति (Inflation) कहते हैं।

8. मुद्रास्फीति और मुद्रा सिद्धांत का संबंध

जब मुद्रा की मात्रा बढ़ाई जाती है:

  • और यदि अर्थव्यवस्था में उत्पादन (T) नहीं बढ़ता है,
  • तो कीमतें (P) बढ़ जाती हैं।

इसी को मुद्रास्फीति कहते हैं।

जब मुद्रा बहुत अधिक बढ़ा दी जाती है और वह वस्तुओं की उपलब्धता से ज्यादा हो जाती है, तो मुद्रा की क्रय शक्ति घट जाती है और वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं।

9. इस सिद्धांत की सीमाएँ

हालांकि फिशर का सिद्धांत उपयोगी है, लेकिन इसमें कुछ सीमाएँ हैं:

  1. V (मुद्रा की गति) बदल सकती है, स्थिर नहीं रहती।
  2. T (उत्पादन) भी बदलता है, खासकर अल्पकाल में।
  3. व्यवहार में कीमतें तुरंत नहीं बदलतीं; इसमें समय लगता है।
  4. कभी-कभी लोग मुद्रा को बचत के रूप में रखते हैं, जिससे उसकी गति धीमी हो जाती है।

10. फिशर सिद्धांत का आधुनिक उपयोग

आजकल केंद्रीय बैंक (जैसे भारत में RBI) जब मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाते हैं या कम करते हैं, तो वे इस सिद्धांत को ध्यान में रखते हैं। उनका उद्देश्य कीमतों को स्थिर रखना और महँगाई पर नियंत्रण रखना होता है।

11. उत्तर: सवाल का निष्कर्ष

प्रश्न: यदि फिशर के समीकरण में मुद्रा पूर्ति (M) को 2 गुना कर दिया जाए, तो कीमत स्तर (P) क्या होगा?

उत्तर:

यदि V और T स्थिर रहें (फिशर सिद्धांत की मान्यताओं के अनुसार), तो:

  • M को 2 गुना करने पर
  • कीमत स्तर (P) भी 2 गुना हो जाएगा।

सारांश में:

स्थितिमुद्रा (M)कीमत स्तर (P)
पहले1005
बाद में (2×M)20010

👉 कीमतें दोगुनी हो जाएँगी।

12. परीक्षा उपयोग के लिए महत्वपूर्ण बिंदु (One-liners for Revision)

  1. फिशर का समीकरण: MV = PT
  2. मुद्रा की मात्रा और कीमत स्तर में सीधा संबंध।
  3. M को 2 गुना करने पर, P भी 2 गुना हो जाता है (जब V और T स्थिर हों)।
  4. यह सिद्धांत दीर्घकालिक है।
  5. महँगाई को समझने में इस सिद्धांत की भूमिका महत्वपूर्ण है।

13. संभावित प्रश्न (Objective & Short Answer)

(1) फिशर के समीकरण में M को 2 गुना करने पर कीमत स्तर क्या होगा?
➤ 2 गुना

(2) फिशर के सिद्धांत में V और T को क्या माना गया है?
➤ स्थिर

(3) MV = PT में M और P में किस प्रकार का संबंध है?
➤ प्रत्यक्ष (Direct Relationship)

(4) यदि M बढ़े और V, T स्थिर रहें तो किस प्रकार की स्थिति उत्पन्न होगी?
➤ मुद्रास्फीति (Inflation)

(5) मुद्रा के परिमाण सिद्धांत के जनक कौन हैं?
➤ इरविंग फिशर

14. निष्कर्ष

फिशर का मुद्रा परिमाण सिद्धांत यह बताता है कि जब मुद्रा की आपूर्ति में परिवर्तन होता है, तो उसका सीधा प्रभाव मूल्य स्तर पर पड़ता है। यदि अन्य कारक स्थिर हैं, तो मुद्रा की मात्रा को 2 गुना करने पर कीमतें भी 2 गुना हो जाती हैं। यह सिद्धांत आज भी आर्थिक नीतियों और मुद्रास्फीति को समझने के लिए उपयोगी है।

मुद्रा के परिमाण सिद्धांत और फिशर समीकरण से जुड़े 20+ जरूरी प्रश्नोत्तर

1. प्रश्न: फिशर का विनिमय समीकरण क्या है?

उत्तर: फिशर का विनिमय समीकरण है – MV=PTMV = PTMV=PT

2. प्रश्न: फिशर के समीकरण में M का अर्थ क्या है?

उत्तर: M का अर्थ है – मुद्रा की मात्रा (Money Supply)

3. प्रश्न: V का क्या मतलब है?

उत्तर: V का अर्थ है – मुद्रा की गति (Velocity of Money)

4. प्रश्न: P किसे दर्शाता है?

उत्तर: P दर्शाता है – वस्तुओं और सेवाओं का औसत मूल्य स्तर (Price Level)

5. प्रश्न: T का अर्थ क्या है?

उत्तर: T का अर्थ है – वस्तुओं और सेवाओं की कुल मात्रा या लेन-देन की संख्या (Total Transactions)

6. प्रश्न: यदि M को 2 गुना कर दिया जाए और V व T स्थिर हों, तो P में कितना परिवर्तन होगा?

उत्तर: P (कीमत स्तर) भी 2 गुना हो जाएगा।

7. प्रश्न: मुद्रा के परिमाण सिद्धांत के जनक कौन हैं?

उत्तर: इरविंग फिशर (Irving Fisher)

8. प्रश्न: फिशर का समीकरण किस प्रकार का संबंध दर्शाता है?

उत्तर: यह मुद्रा की मात्रा और मूल्य स्तर के बीच सीधा (प्रत्यक्ष) संबंध दर्शाता है।

9. प्रश्न: यदि V और T दोनों स्थिर हों, तो M और P में कैसा संबंध होगा?

उत्तर: M और P में सीधा अनुपाती (Direct Proportional) संबंध होगा।

10. प्रश्न: यदि M बढ़े लेकिन T भी बढ़े, तो कीमत स्तर पर क्या असर होगा?

उत्तर: कीमतें उतनी तेजी से नहीं बढ़ेंगी या स्थिर रह सकती हैं, क्योंकि वस्तुओं की आपूर्ति भी बढ़ रही है।

11. प्रश्न: क्या फिशर का सिद्धांत अल्पकालिक है या दीर्घकालिक?

उत्तर: यह एक दीर्घकालिक (Long-term) सिद्धांत है।

12. प्रश्न: क्या फिशर के समीकरण में मुद्रा की गति (V) स्थिर मानी जाती है?

उत्तर: हाँ, यह एक मुख्य मान्यता है।

13. प्रश्न: क्या यह मान लिया गया है कि T पूरी तरह से उपयोग में है?

उत्तर: हाँ, T को पूर्ण रोजगार स्तर (Full Employment Level) पर स्थिर माना गया है।

14. प्रश्न: मुद्रा की अधिक आपूर्ति से क्या होता है?

उत्तर: इससे मुद्रास्फीति (Inflation) हो सकती है।

15. प्रश्न: यदि मुद्रा की गति (V) घट जाए तो कीमत स्तर (P) पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

उत्तर: कीमतें (P) घट सकती हैं, क्योंकि कुल व्यय कम हो जाएगा।

16. प्रश्न: कीमत स्तर (P) बढ़ने से मुद्रा की क्रयशक्ति पर क्या असर होता है?

उत्तर: मुद्रा की क्रयशक्ति घट जाती है।

17. प्रश्न: यदि MV > PT हो जाए तो अर्थव्यवस्था में क्या स्थिति उत्पन्न होती है?

उत्तर: यह मुद्रास्फीति (Inflation) की स्थिति को दर्शाता है।

18. प्रश्न: MV < PT की स्थिति को क्या कहते हैं?

उत्तर: यह मुद्रास्फीतिजन्य मंदी (Deflation) या मांग में कमी को दर्शाता है।

19. प्रश्न: फिशर सिद्धांत की एक महत्वपूर्ण आलोचना क्या है?

उत्तर: यह मानता है कि V और T स्थिर होते हैं, जबकि व्यवहार में वे बदलते रहते हैं।

20. प्रश्न: भारत में मुद्रा आपूर्ति किसके द्वारा नियंत्रित की जाती है?

उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)

21. प्रश्न: फिशर सिद्धांत किस प्रकार की मुद्रा के लिए उपयुक्त है?

उत्तर: प्रचलित मुद्रा (Circulating Currency) के लिए, जो लेन-देन में प्रयोग होती है।

22. प्रश्न: फिशर का समीकरण किस अर्थशास्त्र शाखा से संबंधित है?

उत्तर: मौद्रिक अर्थशास्त्र (Monetary Economics)

23. प्रश्न: मुद्रा के परिमाण सिद्धांत के अनुसार कीमतों पर नियंत्रण के लिए क्या करना चाहिए?

उत्तर: मुद्रा की आपूर्ति को नियंत्रित करना चाहिए।

24. प्रश्न: यदि किसी देश में लगातार मुद्रा आपूर्ति बढ़ती जाती है तो दीर्घकाल में क्या असर होगा?

उत्तर: दीर्घकाल में महँगाई बढ़ेगी और मुद्रा की क्रयशक्ति घटेगी।

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